ये जो
लम्बी से सड़क
शहर हो गांव को जोड़ती है
तुम्हारी जीवन रेखा हो सकती है
सड़क के छोर पर
ये शहर है
तड़क भड़क से भरा पूरा
निरंतर भागता
निरंतर जागता
बड़ी बड़ी बातें करता
आकर्षित करता है
लेकिन
एकाकी दौड़ता सा दिखता है
बेहद व्यस्त सा प्रतीत होता है
दूसरे छोर पर
गांव तुम हो
मुझे दिख नहीं रही है
धूल भरी पगडंडिया
नहीं दिखता है मुझे
गौ धूलि से भरा भरा वातावरण
वो चिड़ियों की चहचहाट
देर शाम बुजुर्गो का
चौपाल पर जमघट
और गप्पों शप्पों का दौर
मुझे नहीं दिखती है
हरियाली लहलहाते खेत
दिख रहे है
उदास टूटते बिखरते पहाड़
काले काले पत्थर
अपने आप में गुम सम्बंध
दम दौड़ती संवेदनाये
गांव
तुम अब गांव नहीं रहे
शहर हो गए हो।
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